बात कुछ समय पहले की हैए जब हम एमण्ए द्वितीय
वर्ष में था। इस वर्षष् मेरी दोस्ती कुछ षरारती लड़को के साथ हो गई। बस अब तो दिन
भर उनके साथ उछल कूदए मौज मस्तीए करता और पढाई में ध्यान देना बंद कर दिया। यह सब
बात मेरे परिवार व खासतौर पर मेरे दादाजी से छुप ना सकी। एक दिन दादाजी ने मुझे
बड़े प्यार से समझाया.बेटा नितिनए जिदगीं में खेलना.कुदनाए खाना.पीना सब जरुरी है
अपनी.अपनी जगह पर बेटाए शायद पढने के लिए जिदगीं में कभी दोबारा मौका नहीे मिलेगा।
अगर आज पढ़ लोगें तो जिदगीं बन जायेगीए अगर यह समय हाथ से निकर गयाए तो शायद पीछे
लौट पाना कभी संभव नहीं होगा। बस दादाजी की बातें मेरे दिल.दिमाग को छु गई। मैंने
उस समय व उसी दिन से शरारतों से तौंबा कर ली व पढाई में ध्यान देना षुरु कर दिया।
हर चीज का टाइम टेबल बना लिया। हर काम वक्त पर करने से अच्छे अंको से मैंने
एमण्एण् द्वितीय वर्ष पास किया। अब मैं
अच्छे पद पर हूँ अपने छोटे से परिवार के साथ पर कभी.कभी दादाजी की मीठी बातें याद
आ जाती हैं। वो तो अब नहीं इस संसार मेंए पर वह बात आज भी अमर हैं।
जगदीश
सुथार
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