सिरोही। रमेश सुथार
जालोर-भीनमाल सड़क मार्ग पर जालोर
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर तेरहवीं शताब्दी में बना भगवान अपराजितेश्रर शिव
मन्दिर आज आपेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान
श्री राम ने अपने वनवास काल में यहां रात्रि विश्राम किया था। इस कारण इस स्थान का
नाम रायशन पडा,कालांतर में बिगड कर रामसीन हो गया।यहां स्थापित शिव प्रतिमा
पांच फीट ऊंची है जो श्वेत स्फटिक पत्थर से निर्मित है।आदि देव भगवान भोलेनाथ समधीस्थ
मुद्रा में विराजित है।कण्ठ में मालाएं,कानों में कुण्डल,भुजाओ में बाजूबन्द,कटि में नागपाश
तथा पैरो में नूपुर धारण किये हुये है। प्रतिदिन प्रातः कालीन स्न्नान के बाद भगवान
का अलग-अलग प्रकार से श्रंगार किया जाता है।कहा जाता है कि यह मूर्ति रामसीन के जमीदार को खेत में दबी हुई मिली थी ।भगवान शिव के दोनो
ओर यक्ष मूर्तियां बनी हुई है जिन्हे काला भैरू तथा गोरा भैरू भी कहा जाता है।
मन्दिर परिसर में मध्यकाल में निर्मित
अनेक प्राचीन देव मूर्तियां असुरक्षित अवस्था में रखी हुई हैं जो समय के साथ नष्ट होती
जा रही है। मन्दिर में बांयी ओर गोमती कुण्ड नामक बावडी है,जिसका जल खारा
है। यह मन्दिर दुर्गुनमा बना हुआ है जिसके चारों कोनों पर बुर्ज बनी हुई थी।इसका रूप
संभवत राठौडों के काल में हुआ होगा।क्योंकि चौहान काल में इस मन्दिर के विमान आकृति
में बने होने के प्रमाण प्राप्त होते हैं।इस मन्दिर के पास लोक श्रद्धा के केन्द्र
बाबा रामदेव तथा देवी दुर्गा के मन्दिर बने हुए है । मन्दिर के पीछे से एक बरसाती नदी निकलती है।रामसीन तथा भीनमाल के
बीच का क्षैत्र काबा पट्टी कहलाता है। कहा जाता है कि जब महाभारत युद्ध की समाप्ति
के पश्चात अर्जुन भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से गोपियों को हस्तिनापुर ले जा रहे थे
तो इसी स्थान पर अर्जुन को परास्त कर गोपियों को लूट लिया था। इस सम्बंध में एक कहावत
भी कही जाती है -काबा लूटी गोपियां ,वे अर्जुन के बाण ,शिवारात्री पर यहां विशाल मेंला लगता है
जिसमें भाग लेने हेतू आसपास के हजारों ग्रामीण दर्शन हेतू आते है ।
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