जयपुर, ११ जनवरी। पश्चिमी राजस्थान
की लोक सांगीतिक परम्पराओं के संरक्षण व संवद्र्घन में जुटे लोक कलाकारों में माण्ड
गायिका श्रीमती शोभा हर्ष उन चुनिन्दा कलाकारों में शामिल हंै जिनके सुमधुर कण्ठ से
नि:सृत लोक लहरियाँ श्रोताओं के दिल को भीतर तक छू जाती हंै। यों तो राजस्थानी लोक
संगीत की सभी विधाओं में उनका दखल है लेकिन माण्ड गायन में वे देश के अन्य माण्ड गायकों
की बराबरी पर मानी जा सकती हैं।
सन् १९६८ में ग्यारह जनवरी
को पैदा हुई शोभा को बचपन से ही लोक संगीत भरा माहौल मिला। इस वजह से उनकी स्वाभाविक
रुचि इस तरफ आकर्षित हुई। गाने-बजाने का यह शौक ही ऐसा था जिसकी बदौलत शोभा आज राजस्थान
की उन कलाकारों में शामिल हैं जिनके कद्रदान जैसलमेर से लेकर सात समंदर पार तक हंै।
संस्कृति व साहित्य की बहुआयामी विधाओं से भरी-पूरी शोभा सुगम संगीत, भजन, ग़$जल, हवेली संगीत, कीर्तन आदि क्षेत्रों में
भी सुपरिचित हस्ताक्षर हंै।
आकाशवाणी की 'बी' श्रेणी की कलाकार शोभा आकाशवाणी
व अन्य माध्यमों पर अनेक बार अपनी प्रस्तुति दे चुकी हंै। मरु महोत्सव, थार महोत्सव, उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक
केन्द्र, इलाहाबाद
के विभिन्न आयोजनों, राजस्थान दिवस व अन्य सामाजिक सरोकारों व राष्ट्रीय दिवसों से संबंधित आयोजनों
के विशाल मंचों पर उनकी माधुर्यपूर्ण व ओजस्वी प्रस्तुतियों ने हमेशा सराहना पायी है।
लोक संस्कृति संरक्षण व उम्दा
प्रस्तुतियों के लिए उन्हें कई बार पुरस्कृत व सम्मानित किया जा चुका है। सन् २००७
में जिला प्रशासन द्वारा लोक गीतों के संरक्षण के लिए उन्हें सम्मानित किया गया। इसी
वर्ष जैसलमेर स्थापना दिवस पर पूर्व महारावल द्वारा भी शोभा हर्ष को संगीत जगत की उल्लेखनीय
सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। कला, हस्तशिल्प, शास्त्रीय व अद्र्घशास्त्रीय संगीत, योग, मंच संचालन, नृृत्य, रंगमंच आदि उनके प्रमुख शौक
रहे हैं। इन सभी क्षेत्रों में उनकी रचनात्मक भागीदारी व प्रदर्शन ने खूब प्रशंसा पायी
है।
राजस्थान, गुजरात मुम्बई, उत्तरप्रदेश व देश के कई
हिस्सों में बड़े-बड़े संगीत महोत्सवों व समारोहों में वे अपने हुनर का प्रदर्शन कर
चुकी हैं। जैसलमेर जिले में सभी प्रकार के लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी सदैव
उल्लेखनीय भागीदारी रही है।
शोभा हर्ष ने राजस्थान विश्वविद्यालय
से बीए करने के बाद भातखण्डे संगीत विद्यापीठ लखनऊ से विशारद (वाणी) की उपाधि प्राप्त
की जो कि बी.ए. व बी.एड. के समकक्ष है। बाद में प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से जूनियर
डिप्लोमा (वोकल) किया। भाव संगीत लाईट म्यूजिक का भी वे प्रशिक्षण पा चुकी हंै।
इसके अलावा कई स्कूलों में
साँस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रतिस्पर्धाओं व वार्षिकोत्सवों में उनकी महत्त्वपूर्ण भागीदारी
रही है। खूब सारे साँस्कृतिक कार्यक्रमों में बतौर निर्णायक उन्हें पूरे आदर के साथ
बुलाया जाता रहा है।
शास्त्रीय संगीत व स्वरों
की शिक्षा-दीक्षा शोभा ने अपने ससुर रमेश हर्ष से प्राप्त की। ग्वालियर घराने के नामी
कलाकार तथा जैसलमेर रियासत के दरबारी गायक पं. राधोमल हर्ष, अपने चाचा पं. वासुदेव हर्ष (मुम्बई)
ग्वालियर घराने की ही शाखा भाखले घराने के मशहूर कलाकार शिवराम जैसी देश-विदेश में
विख्यात हस्तियों से शास्त्रीय संगीत व विभिन्न सांगीतिक विधाओं की दीक्षा ली।
संगीत की सेवा को ही अपने
जीवन का लक्ष्य मानने वाली शोभा एक अप्रैल २०११ से एयरफोर्स केन्दीय विद्यालय,
जैसलमेर में संगीत
विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हंै। इससे पूर्व २००६-२००८ तक वे बीएसएफ के
डाबला स्थित केन्द्रीय विद्यालय में भी संगीत विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवाएं दे चुकी
हैं।
इस समय शोभा संगीत जगत की
जानी-मानी संस्था 'नादस्वरम' में संगीत स्वर विज्ञान की प्रमुख शिक्षिका का दायित्व निभाते हुए नई पीढ़ी के
कलाकारों का हुनर निखार रही हैं। इसके अंतर्गत पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से वे
सायंकालीन संगीत कक्षाओं का संचालन कर रही हंै।
शोभा हर्ष एक नाम है उस बहुआयामी
व्यक्तित्व का, जिसने अपने आपको संगीत जगत की सेवा में समर्पित कर रखा है। आकाशवाणी से उन्हें
संगीत स्वर व नाटक में 'बी’ श्रेणी कलाकार का दर्जा मिला हुआ है। आकाशवाणी द्वारा बच्चों
एवं महिलाओं के लिए आयोजित कार्यक्रमों में कंपियर के रूप में मान्य हंै। आकाशवाणी
से उन्होंने वाणी की प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया हुआ है।
सामाजिक, साहित्यिक व लोक सांस्कृतिक
सरोकारों से जुड़ी तमाम गतिविधियों में सक्रिय सहभागिता निभाने वाली शोभा हर्ष स्पिक
मैके, जैसलमेर
शाखा और नादस्वरम संगीत संस्था की सक्रिय सदस्य भी हंै। शोभा हर्ष जैसलमेर की सांस्कृतिक
परम्परा की वह दैदीप्यमान कलाकार हंै जिनकी आभा दूर-दूर तक लोक संस्कृति के वैशिष्ट्य
को आलोकित कर रही है।
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